शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

भाजपा का आत्मघाती रवैया..

भाजपा उत्तर प्रदेश में नहीं जीत सकती, इसलिए नहीं कि उसके पास नेता नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि उसके पास अपने कार्यकर्ता की देखभाल करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपना समझने की ही समझ नहीं है। अभी नया हादसा देखिये, दयाशंकर ने जो भी कहा हो उसके बाद दयाशंकर के परिवार के प्रति भाजपा का उदासीन रवैया निंदनीय है। एक कार्यकर्ता अपनी ज़िन्दगी पार्टी को दे देता है, लेकिन सत्ता की मलाई मिल जाने पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कांग्रेस सरीखा हो रहा है। मोदी के सिपहसालार अपनी ही वोट बैंक की अनदेखी कर रहे हैं और कार्यकर्ता हाशिये पर जा रहा है।

हाँ एक और बात, दयाशंकर ने जो कहा वो तो जाने दीजिए लेकिन पैसा लेकर सीट बांटने वाले के लिए क्या शब्द इस्तेमाल होने चाहिए? उसपर मायावती की पार्टी के कार्यकर्ता और वोटबैंक? लेकिन यह वोट बैंक इतना संगठित है कि मायावती जो बिना किसी एजेंडे(बसपा का कोई एजेंडा है क्या?) के दल की नेता और थाली के बैंगन सरीखी स्थिति होने पर भी एकदम तैयार हैं चुनाव के लिए।

उधर भाजपा समझ ही नहीं रही कि उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए सड़क पर उतरना होगा, यह अपने आम कार्यकर्ता के परिवार को तो संभाल नहीं पा रही... उत्तर प्रदेश क्या ख़ाक संभालेगी...

बुधवार, 20 जुलाई 2016

साईं ट्रस्ट की दुकानदारी...

आज यूँ ही साईं बाबा की चर्चा निकली। श्रद्धा से जुडी हुई बातें हैं सो इस पर कुछ भी कहना बहुत कठिन होता है उस पर भी मुझ जैसा मूढ़मति, क्या ही कहा जाए।

मैं किसी भी भक्ति या विचारधारा के समर्थन के खिलाफ नहीं लेकिन अंध-भक्ति के खिलाफ ज़रूर हूँ। सनातन धर्म को चोट पहुँचाने वाले कोई और नहीं, स्वयं हिन्दू धर्म के बुद्धिजीवी लोग ही हैं जिन्होंने न जाने किस स्वार्थ से पीड़ित होकर सनातन धर्म को घनघोर क्षति पहुंचाई है। यहाँ बात शिरडी के साईं बाबा के चेलों की व्यापारिक सोच को लेकर है जिसने सनातन धर्म को इस कदर चोट पहुंचाई की स्वयं भोले हिन्दू धर्म के लोग भी इसको समझ नहीं पाए। आज जब मैंने जर्सी सिटी में भी साईं की पालकी के बाद सत्यनारायण मंदिर में पूजा का कार्यक्रम देखा तो अजीब लगा क्योंकि साईं बाबा का भगवान विष्णु की पूजा से क्या लेना देना?

साईं को साईं रहने दीजिये और भगवान विष्णु स्वरुप और भागवत को अपनी जगह रहने दीजिये। आधुनिकता के चक्कर में पहले ही पिछली पीढ़ियों ने धर्म को बहुत भ्रष्ट किया है और ऊपर से अगर सब कुछ छोड़ते चले जायेंगे तो फिर अगली पीढ़ी को पकड़ने के लिए रह क्या जाएगा? अपने धर्म को समझने का प्रयास तो कीजिये, साईं बाबा की पूजा करनी है तो कीजिये लेकिन यदि आप ऐसा अपने धर्म और दर्शन को भूलने की कीमत पर करते हैं तो फिर यह आपकी भयंकर भूल है।

मुझे तकलीफ इस बात से है कि इन्होने एक बड़े व्यापारी के समान इन्होंने साजिशन प्लान के तहत अपनी फ्रेंचाइजी बेचीं और हिंदुओं की सहिष्णुता का भरपूर लाभ उठाया और इस हद तक भ्रष्ट कर दिया जिससे आज कई एक हिन्दू समाज के लोग साईं को भगवान मान राम और कृष्ण के समतुल्य साईं उनकी पूजा करने लगे। भोले हिन्दू पहले इस साज़िश का शिकार बने और अब इसी साजिश का हिस्सा हैं।

अगर आपको बात न समझ में आ रही हो तो कुछेक बातों पर ध्यान दीजिए:
  • इन्होंने वैदिक पद्धितियों की आड़ लेकर साईं की पूजा के कर्मकाण्ड तय किये और साईं को भगवान के रूप में स्थापित करने का पूरा प्रयास किया
  • साईं तो सर्व धर्म समभाव के हितकारी थे तो उनकी कोई मूर्ति या कोई प्रतीक किसी मस्ज़िद या गिरिजाघर में क्यों नहीं? यदि है तो बताने का कष्ट कीजिये? 
  • वैदिक रीति रिवाज़ से पूजा करने के लिए सनातन वैदिक मंत्रों को ही तोड़ मोड़ कर उसमे साईं नाम को इस प्रकार पिरोया जैसे मानो स्वयं वेदव्यास या वाल्मीकि या स्वयं ब्रम्हा ही यह मन्त्र लिख गए हों
  • हर सनातन धर्म के मंदिर में फ्रेंचाइजी दे दी गयी और बड़ा मुनाफा बटोर लिया गया
  • मुझे बताइये कि साईं को किसी भी साहित्य में साईं अल्लाह या साईं यीशु कहा गया? नहीं क्योंकि साईं ट्रस्ट जानता है हिन्दू धर्म में मूर्ख ज्यादा हैं सो दूकान यहाँ अच्छे से चलेगी। अगर मुस्लिम या ईसाईयों को छुआ तो एक ही दिन में दूकान बंद करा देंगे
यहाँ दोष साईं का नहीं, साईं तो साईं ही थे और उनका योगदान अपनी जगह है लेकिन साईं ट्रस्ट और साईं के चेलों द्वारा चलाई जा रही लूट की ओर ध्यान देने की जरूरत है। अगर यह साईं के नाम पर साईं के मंदिर स्थापित करते हैं तो कर लें परंतु सनातन धर्म के मंदिरों में साईं की फ्रेंचाइजी बांटना बंद करें। जो कोई मुझे साईं ने नाम पर चल रहे अस्पतालों का उदाहरण देकर समझाना चाहे तो उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की साईं ट्रस्ट की सालाना कमाई लगभग ग्यारह सौ करोड़ है और उसे अपनी कमाई का पचासी प्रतिशत समाजिक कार्यक्रम में खर्च करना चाहिए, जबकि क्या ऐसा है?

(यह आलेख साईं ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे बिज़नस रैकेट की पोल खोल है, इसका किसी धर्म या समुदाय से कोई लेना देना नहीं)

सोमवार, 4 जुलाई 2016

उत्तर प्रदेश और भाजपा....

वर्ष 1992 उत्तर प्रदेश का बच्चा बच्चा सड़क पर... जय श्री राम के नारे और जयघोष से हर शहर, गली, मोहल्ला गुंजायमान। संघ और भाजपा के कार्यकर्ता घर घर राम की अलख जलाने और भाजपा के प्रचार में मगन.. एक आम आदमी का बयान, अगर हिन्दू सवर्णों के लिए कोई पार्टी है तो भाजपा ही है। नतीजा, कल्याण सिंह पूर्ण बहुमत से सत्ता में। भाजपा के लिए उस समय उत्तर प्रदेश की विजय 2014 में मोदी की विजय से कहीं भी कम नहीं थी। लेकिन भाजपा ने उस दौरान कुछ अजीब से काम कर दिए, पहला नक़ल विरोधी अध्यादेश, दूसरा पुराने समाजवादी नियमों को यूँ ही छोड़ देना। अयोध्या में मस्जिद का ढांचा गिराया, सरकार गिरी, देश भर में बवाल हुआ उसकी प्रतिक्रिया में न जाने क्या क्या हुआ मैं उसको याद नहीं करना चाहता लेकिन भारतीय राजनीति में किसी मुद्दे को घर घर जाकर इस प्रकार प्रचार करना अभूतपूर्व था और सेल्स की टर्मिनॉलॉजी में कहूँ तो राजनीति में डोर टू डोर सेलिंग का इससे बड़ा उदाहरण मुझे नहीं दीखता। बहरहाल सरकार गिरी, राष्ट्रपति शासन लगा और फिर जब चुनाव हुए तब राम लहर के कारण सरकार वापसी जैसी स्थिति कागज़ पर दिख जरूर रही थी लेकिन तभी ज्योति बसु से प्रेरणा पाकर समाजवादियों ने एम-वाय समीकरण खेला। इस एम-वाय (मुस्लिम यादव) वोट बैंक की राजनीति ने जमीनी स्तर पर ओबीसी वोट बैंक, मुस्लिम धर्म गुरु के फतवे और वोट बैंक को बनाने के लिए एक अलग ही प्रयास शुरू किया। जिस समय मुलायम मुस्लिम और यादव को रिझाने में लगे थे, भाजपा अपने मूल हिन्दू वोटर को जोड़ पाने में असफल हो रही थी। नक़ल विरोधी अध्यादेश हटाने का वायदा और मुस्लिम धर्म गुरुओं से समझौते और मिले फतवे के बाद पड़े एकतरफा मुस्लिम वोट और दूसरी तरफ भाजपा के रवैये से दुखी हिन्दू वोटर ... नतीजा मुलायम सिंह पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बन गए। सत्ता में बने रहने के लिए मुलायम सिंह ने उस एम-वाय को याद रखा और मुस्लिम वोट बैंक की खुलकर राजनीति की। बाद में किसी भी प्रकार से वोट बैंक वापस पाने की भाजपा की जुगाड़ राजनीति, मायावती से गठबंधन करना... यह सब अजीब सी हरकते देखकर भाजपा का मूल, सवर्ण हिन्दू वोटर पूरी तरह से भाजपा से दूर हो गया। सन नब्बे के उत्तरार्ध की कांग्रेस सरीखा हाल भाजपा का उत्तर प्रदेश में हो गया। न संगठन बचा, न लोग, न कार्यकर्ता जो कुछ बचे भी वह भी आपसी गुटबाजी का शिकार होकर नाकारे हो गए। 

लोकतंत्र में अपने कार्यकर्ता और वोटबैंक को नज़रअंदाज करना कहीं से भी तर्क संगत नहीं होता और इस बात को मुलायम सिंह भी समझते हैं, मायावती भी समझती हैं कल की नौसिखिया आआपा भी समझ गयी और एक यही बात है जिसमे भाजपा ज़बरदस्त तरीके से फिसड्डी है। यह पैराशूट नेता लाते हैं और अपने दल के कार्यकर्ता पर ही भरोसा नहीं करते। तकलीफ यही है कि अब इनकी इसी हरकत के कारण कांग्रेस मुक्त भारत की जगह कांग्रेस युक्त भाजपा सरीखी स्थिति हो रही है। 

भाजपा हर उस राज्य में जबरदस्त प्रदर्शन कर रही है जहाँ उसका सामना सिर्फ कांग्रेस से है क्योंकि अब देश ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया है और कांग्रेस के एक मात्र विकल्प भाजपा को विजय मिल रही है। यह स्थिति वहाँ बदल जाती है जहाँ एक भी क्षेत्रीय दल हैं, क्योंकि यहाँ भाजपा को न सिर्फ हार मिलती है बल्कि सूपड़ा साफ़ होने सरीखी स्थिति बन जाती है। दिल्ली, बिहार इसके नायाब उदाहरण हैं और यकीन मानिए स्थिति उत्तर प्रदेश में भी ऐसी ही होगी।  

जब तक भाजपा अपने जमीनी कार्यकर्ता और अपने वोटर से दूर रहेगी, हारती रहेगी। अपना वोट बैंक बचाने के लिए दादरी सरीखे एक मामले पर दो सदस्य वाला दल भी संसद बंद करा देता है और जब डॉक्टर नारंग जैसा मामला होता है, किसी हिन्दू धर्म स्थल पर तोड़-फोड़ होती है तब आखिर क्यों भाजपा के दो सौ चौरासी सांसद चुप रहते हैं? आखिर उस राज्य की सरकार के खिलाफ कार्यवाही, जुलुस, तोड़-फोड़, प्रदर्शन क्यों नहीं ? 

2014 में कांग्रेस के प्रति क्रोध और मोदी की अपार परिश्रम और ऊर्जा से जीत मिली लेकिन यह रोज रोज नहीं होगा। भारत में वही सफल होगा जो वोट बैंक की राजनीति करेगा, यह काम मुलायम, ममता, माया, जयललिता और लालू तो जानते ही थे अब तो आपिये भी समझ गए...   हाँ अगर जनता स्वाभिमानी होती, बहुसंख्यक हिन्दू इतना बेवकूफ न होता तो स्थिति अलग होती लेकिन जनता का बंटा हुआ होना और उसपर भाजपा का ऐसा रवैया.... बहुत मुश्किल है। चलिए जैसा विकास दिल्ली वालों को मिला, जैसा समाजवाद बिहार में आया ठीक वैसा ही उत्तर प्रदेश में भी जल्दी ही आएगा।